جمعہ، 26 جون، 2009

शमोएल अहमद की कहानियों में ज्योतिषशास्त्रा का अर्थ: डा॰ शैख़ अकील अहमद

 



 ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा गया है । प्राचीन काल से ही जीवन के रहस्यों को समझने के लिए ज्योेतिष शास्त्रा का सहारा लिया जाता रहा है। ज्योतिष की लोकप्रियता की यह स्थिति है कि भारत के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में इस की संस्थाएँ स्थापित की जा रही है। ज्योतिष में साहित्यकारों की रुची आदी काल से रही है । बाल्मिकि ने रामायण में श्रीराम की जन्मकुंडली ही रवींच दी है ।कवि कालीदास ने तो ज्योतिष के कई ग्रंथ रचे हैं । रचनाकार अमृतलाल नागर ने ‘‘सूरदास’’ के जीवन पर ‘‘कंजन नैन’’ नाम का उपन्यास लिखा है, जिसमें ज्योतिष क सिद्धान्त® का उपयोग किया गया हैै। उन्होंने तुलसीदास के जीवन पर भी एक पुस्तक ‘‘मानस का हंस’’ लिखी है, जिसमें ज्योतिष विद्या के सिद्धन्तों से सहायता प्राप्त किया है। उर्दू के प्रसिद्ध कवि मोमिन खान मोमिन भी ज्योतिष विद्या में पारंगत थे । उन्हों ने अपनी मौत की तिथि तक निश्चित कर दी थी । वर्तमान में शमोएल अहमद न केवल अच्छे कहानीकार हैं बल्कि ज्योतिष के विद्ववान भी है। इस विषय से संबंध्ति इनकी एक पुस्तक जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है। शमोएल अहमद ने अपनी कुछ कहानियों के पात्रों के चित्रण में ज्योतिष का सहारा लिया है। इन्होंने ऐसा शिल्प गढ़ा है कि पात्रों के जीवन में होने वाली सभी घटनाओं के बिंब प्रतिबिंब पाठक के मन मस्तिष्क में उतरते चल जाते हैं और ऐसा प्रतीत होता है मानों जो कुछ घटा वो तो होना ही था क्योंकि सभी पात्र अपनी कुण्डली के तारों और नक्षत्रों की चाल के सामने असहाय एवं विवश है। शमोएल अहमद एक इंजीनियर के रूप में बिहार सरकार के अध्ीान कार्यरत रहे हैं। इसीलिए इन्होंने बिहार की राजनीति को निकट से देखा और समझा है। जात-पाँत पर आधरित बिहार के राजनीतिक समीकरण ‘‘माई-समीकरण’’ ‘‘अर्थात् मुस्लिम एवं यादव समीकरण पर भी इनकी खास नज़र रही है और इसे कहानियों और उपन्यासों में मुख्य स्थान दिया है। इनका एक उपन्यास ‘महामारी’ माई समीकरण पर ही आधरित है। इनकी कई कहानियों में राजनैतिक नेताओं को बेनकाब किया गया है। जैसे- कहानी ‘‘छगमानुस’’ और ‘‘अलकम्बूस की गर्दन’’ में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि सत्ता प्राप्त करने के लिए किस प्रकार नेता व्याकुल रहते हैं और अपने कष्टों के निवारण और अपने भविष्य की स्थिति जानने के लिए ज्योतिषियों की सहायता लेते रहते हैं। इसलिए इन कहानियों में ज्योतिष के सिद्धान्तों का उपयोग अध्कितम हुआ है। शमोएल अहमद की कहानियों में सेक्स का रंग गहरा होता है । कहानी ‘‘मिश्री की डली ै में नारीपात्रा ‘‘राशिदा’’ पर शुक्र का प्रभाव है । लेकिन शुक्र पर शनि की नजर है । वो पराइ पुरूष्य्ा से सम्बंध जोड़ती है । उसपर सेक्स प्रत्येक क्षण छाया रहता है। इनकी ऐसी ही कहानियों के संदर्भ में ज्योतिष के सूत्रों से विवेचना की जाएगी। शमोएल अहमद की कहानी ‘‘अलकम्बूस की गर्दन’’की नींव ही ज्योतिष के सूत्रों पर आधरित है। इसे पढ़कर ज्ञात होता है कि कहानीकार ने ग्रहों को आकाश से उतार कर पृथ्वी पर बसा दिया है। इस कहानी का विषय ही पाठक को आश्चर्यचकित करता है। एसा प्रतीत होता है कि ‘‘अलकम्बूस’’ अरबी साहित्य का कोई प्राचीन पात्र है जिसे कहानीकार ने अपनी कहानी का पात्र बनाया है। कई आलोचकों का मानना है कि इस नाम से कहानीकार ने स्वयं को दर्शाया है, परन्तु नुज़हत कासमी ने अपने विचार व्यक्त करते हूए ‘‘अलकम्बूस’’ के संबंध में विभिन्न प्रकार की जानकारी प्रस्तुत की है। स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में ऐसा है अथवा कासमी की कल्पना मात्र! नुजह्त कासमी के ही शब्दों मेंः ‘‘बुजुर्गों से ऐसा सुना है कि पांच हज़ार ईसा पूर्व, मिश्र में या किसी ऐसे ही देश में उज़ाड़ नगर था जिसमें केवल एक व्यक्ति नग्न अवस्था में रहता था, उसका नाम था ‘‘अ’’..... कुछ समय बाद वहां एक बिना वस्त्रा स्त्राी का जाना हुआ। उसे वो ‘‘अ’’ बहुत पसन्द आया तो उसने वहीं अपना डेरा जमा लिया। इस नारी का नाम था ‘‘ल’’ वर्षों दोनों एक-दूसरे से लड़ते रहे। परन्तु एक बार उनके बीच शारीरिक सम्बन्ध् हो गया....... और पिफर इसके पश्चात् जन्म हुआ-एक ‘‘बोस’’ का....... दूसरे गाँव वालों को जब ये समाचार मिला तो इस आश्चर्य को देखने पहुँचे, और वहाँ पहुँचकर उस अजूबे का नामकरण कर दिया। अब वह आश्चर्यजनक जीव ‘अलकम्बूस’ था।............ शमोएल अहमद का एक बार जब इस गाँव से गुजर हुआ तो उसने इस ‘अलकम्बूस की गर्दन’ में अपनी कलम की नोंक चुभो दी......... और इस तरह शमोएल अहमद की ये अमर कहानी‘‘अलकम्बूस की गर्दन’’ हम तक पहुँची! ऊपर आए वाक्यों में जो जानकारी मिलती है वो चाहे वास्तविक हो या काल्पनिक परन्तु बहुत रोचक है और नाम कहानी के अनुरूप है। इस कहानी में भी चूंकि कहानीकार को कहानी का आधार ज्योतिष पर रखना था और इसमें किसी ज्योतिषि को भी पात्रा बनाना था ताकि इस विद्या के सिध्ान्तों की सहायता से कहानी को आगे बढ़ाया जा सके और रोचकता पैदा की जा सके। इसलिए कहानी के मुख्य पात्र का नाम साधरण नामों से हटकर कुछ अजीब सा नाम ‘अलकम्बूस’ रखा जो किसी काल्पनिक कहानी का पात्र प्रतीत होता है। कहानी में आया है कि अलकम्बूस जब पैदा हुआ तो उसकी गर्दन पर सब्ज रंग का चिन्ह था जो समय के साथ तलवार का रूप ले लेता है । अलकम्बूस के पिता को जिज्ञासा हुई कि यह किस बात का प्रतीक है ? वह अलकम्बूस को लेकर मलंग के पास आया जो ज्योतिषि है । मलंग के स्वरूप को कहानीकार इस तरह दिखाता हैः ‘‘मलंग अपने मठ में मौजूद था, उसके अनुयायी उसको घेरे में लिए बैठे थे, वो उनसे शनि ग्रह की चर्चा कर रहा था कि किस तरह शनि और मंगल का योग राज्य में कलह का कारण बनता है । मलंग के केश शुद्व ऊन की मानिन्द थे और आँखें जलते दियों की तरह रोश्न थीं, इसकी सभी ऊंगलियों में अगूठियाँ थी जिनमें नग जड़े थे। बाईं कलाई में तांबे का कड़ा था और गले में स्फटिक की माला जिसमें जगह-जगह मूंगा और लाजवर्त जड़े हुए थे। मंलग का मुरव-मंडल कलई किए हुए पीतल की तरह चमक रहा था। ;पृष्ठ-58’! ज्ञात रहे कि किसी ज्योतिषी, मलंग या किसी पीर फकीर की सेवा में अध्कितर वही लोग जाया करते हैं जो या तो दुःखी रहते हैं या आने वाली कठिनाईयों से भयग्रस्त रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आध्ी कठिनाईयाँ मलंग के स्वरुप और अजीब वेशभूषा को देखकर दूर हो जाती है और बाकी कठिनाईयाँ उनकी बातें सुनकर और उनकी बातों को मानकर दूर हो जाती है। इसीलिए कहानीकार ने मलंग के व्यक्तित्व को देवी देवताओं की भाँति दिखाने की कोशिश की है, मलंग ने शनि ग्रह के संबंध में बताया कि ब्राह्माण्ड में जब इसका का मिलन मंगल ग्रह से होता है तो राज्य में कलह की सम्भावना बढ़ती है। मलंग को अधिक चमत्कारी दिखाने के लिए कहानीकार ने एक युवक को प्रस्तुत किया है, जिससे उसकी पत्नी को अलग कर दिया गया है, और वह अपनी पत्नी के संबंध में जानना चाहता है कि उस से मिलन कब होगा। उसी छण मलंग की पत्नी अन्दर से बोलती है कि डोल कूएं में गिर गयी ओेर झग्गड़ नहीं है । मलंग कहता है कि छोटी से छोटी घटना भी ग्रहों के प्रभाव से होती है । भविष्य के संकेत वर्तमान में निहित हैं । युवक का प्रश्न अेोर डोल का गिरना दोनो एक ही मुहूत्तर््ा में घटित हुए हैं .....बताओ यह कैैसा शगुन है ? एक अनुयायी ने कहा कि ये अपशगुन है .....कूएं में डोल का गिरना नाकामी का प्रतीक है। लेकिन मलंग कहता है कि डोल का कुएँ में गिरना इस बात की पुष्टि है कि उसकी पत्नी चल चुकी और दोनों एक साथ होंगे, क्योंकि कुएं में पानी परिवार का उदाहरण है। रस्सी बाहर की शक्ति है, जो डोल की सहायता से पानी को कुएं से अलग करती है। रस्सी टूट गई और डोल गिर गई। अब भिन्न करने वाली शक्तियाँ कार्य नहीं कर रही हैं, अर्थात् ध्र्मपत्नी वहाँ से चल चुकी। मलंग की बातों से सभा में उपस्थित व्यक्तियों का विश्वास और पक्का हो जाता है । मलंग अलकम्बूस की गर्दन पर बने सब्ज चिन्ह को गेोर से देरवता है जिस की शक्ल तलवार सी है । पूछने पर कि वो कब पैदा हुआ अलकम्बूस का पिता बताता है कि उस दिन मुल्क आजाद हुआ अेोर ये कि वो अल्प संरव्क फिरके से आता है । मलंग जवाब में कहता है कि राजसिन्हासन का एक स्तम्भ इस गर्दन पर टिकेगा.....’’ और फिर उसी समय प्रमुरव उस्तिया का आगमन होता है।उसका प्रश्न है कि आगे सत्ता उसको मिलेगी या नहीं ? प्रमुरव को वहाँ प्रस्तुत करके कहानीकार ने उसके प्रश्न को अलकम्बूस के पिता को दिए गए उत्तर से जोड़ दिया, जैसे युवक के प्रश्न को डोल के गिरने से जोड़ दिया गया है, अर्थात् प्रमुरव उस्तिया की कठिनाईयों का निवारण अलकम्बूस की गर्दन में छिपा है। मलंग प्रमुरव उस्तिया की जन्म-कुण्डली की इस प्रकार व्याख्या करता है। ‘‘जन्म-कुण्डली में सूर्य और शनि दोनो नीच राशि में थे। शुक्र और बुध की कन्या में युति थी । बृहस्पति भी मकर में नीच का था। । मलंग ने बताया कि मंगल ग्रह जब कर्क से गुज़रेगा, तो परेशानी आरम्भ होगी। मंगल अभी मिथुन राशि में था और कर्क तक आने में चालीस दिन शेष थे। उस्तिया की नजर प्रमुरव की गद्यी पर थी। चालीस दिन पश्चात् चुनाव होना था। उस्तिया को चिन्ता हुई। मलंग ने सुझाव दिया कि तारों को वश में लाने के लिए वह महापीठ का निर्माण करे। स्वयं हवन के लिए बैठे और अजपा जाप करे ताकि सत्ता की देवी वहाँ निवास कर सके।’’ ग्रहों का उत्थान भी है और पतन भी। ब्राह्ममण्डल में प्रत्येक ग्रह के लिए भिन्न-भिन्न स्थान है जहाँ वह उत्थान पर होता है या पतन पर, सूर्य तुला राशि में नीच का होगा और शनि के लिए मेड्ढ राशि पतन की राशि है। इसलिए कहानीकार ने जन्म-कुण्डली में सूर्य एवं शनि को पतन की ओर दिखाया है। पूरी तरह से पतन नहीं होना और भी बुरा है, क्योंकि जो पतन के निकट है, वह पतन तक पहुँचेगा ही। पतन के निकट का अर्थ है कि सूर्य का प्रवेश तुला राशि में और शनि का मेड्ढ राशि में होगा । इस प्रकार दोनों के आमने-सामने होने से शत्राुता उत्पन्न होती है और दोनों ग्रह एक-दूसरे को शत्रुता की दृष्टि से देखते हैं। इसीलिए मलंग कहता है कि आने वाला समय कष्टदायक होगा। मंगल युद्धकारक पाप ग्रह है और चुनाव में सपफलता एवं राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए इसका शक्तिशाली होना अनिवार्य है, परन्तु कर्क राशि में वह पतन को पहुँचता है। कहानीकार ने जन्म कुण्डली को उसके पक्ष में नहीं दिखाया है। वृष राशि में मंगल खुश नहीं रहता क्योंकि यह शत्रु की राशि है मकर वृहस्पति की नीच राशि है जहाँ वह दुर्बल होकर बैठा है। बुध बृहस्पति के मेल-मिलाप से कार्य केोशलता पैदा होती है। जन्म-कुण्डली में जन्म के समय की ग्रह स्थिति दर्सायी जाती है लेकिन जिस समय उसतिया मलंग के पास आता है, मंगल कर्क राशि में नहीं है, परन्तु गोचर में जब कर्क में प्रवेश करेगा तो पतन पर होगा और इस प्रकार दुर्बल पड़ जाएगा। वहाँ आने में चालीस दिन लगेंगे और चालीस दिनों के पश्चात् चुनाव है अर्थात् चुनाव के समय मंगल कमजोर पड़ जाएगा। शनि और सूर्य तो नीच राशि में ही बैठे हैं। इसलिए पतन ही पतन उसतिया का भाग्य है, परन्तु भक्ति एवं जाप से इसे रोका भी जा सकता है, और तारों को बस में भी लाया जा सकता है। इसलिए मलंग कहता है कि श्रद्वापूर्वक ग्रहों की आराधना करो। कहानीकार ने इस बात की ओर इशारा किया है कि ज्योतिष का संबंध जहाँ गणित से है, वहां मिथ की सच्चाईयों से भी है। प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रा किसी न किसी देवता से सम्बन्ध्ति होते हंै। उदाहरणस्वरूप सूर्य - भगवान शिव, कृष्ण से चन्द्रमा , मंगल से हनुमान अेोर बृहस्पति से विष्णु का नेतृत्व होता है। वेदों में कहा गया है कि सभी ग्रहों का देवता सूर्य है एवं ग्रह सूर्य से ही शक्ति प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि इन में लाभ और हानि पहुँचाने की शक्ति है । इन्हंि मनुष्य के भाग्य को संवारने वाला या बिगाड़ने वाला कहा जाता है। ये अपने प्रभाव से राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं। हिन्दू ध्र्म की मान्यताओं के अनुसार भारतीय ज्योतिष का संबंध आत्मा एवं शरीर दोनों से हैं। अध्यात्म के स्तर पर ये ‘‘आत्मज्ञान ’’ अेोर भौतिकता के स्तर पर भोग का मार्ग प्रश्स्त करता है। यही ज्योतिष विद्या का गूढ़ रहस्य है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ज्योतिष विद्या पहले तो बाहरी सुरव प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है, फिर आत्मज्ञान की ओर मनुष्य को ले जाती है। मलंग की राय के अनुसार ग्रहों के व्यीकरण के लिए ‘‘अभिजीत नत्र में पीठ का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ’’ कहानीकार ने पीठ की बनावट इस प्रकार की है कि तारों की दुनियाँ आकाश से उतर कर नीचे धरती पर बस गयी है, थोड़ा इन पंक्तियों पर नजर डालिये: ‘‘अण्डाकार रूप में प्राँगन की घेराबंदी की गई जिसका व्यास पूर्व पश्चिम दिशा में सत्तर ;70द्ध हाथ था और उत्तर दक्षिण दिशा में पचास ;50द्ध हाथ था। प्रांगन के किनारे-किनारे बारह स्तम्भों का निर्माण हुआ। चन्द्रमा की अठाईस ;28द्ध मंजिलों के लिए अठाईस ;28द्ध खांचे बनाए गए। आंगन के बीचांे-बीच सूर्यं ग्रह के लिऐ एक स्तंभ बनाया गया जिसकी ऊँचाई सात ;7द्ध हाथ रखी गई। स्तंभ के चारों ओर चन्द्रमा मंगल शाुक्र, बुध, बृहस्पति और शनि के लिए एक-एक स्तंभ का निर्माण हुआ जिसकी ऊँचाई पाँच हाथ रखी गई। बुध का स्तंभ मिथ्थुन और कन्या के बीचोंबीच बृहस्पति का धनु और मीन के बीच शनि का मकर और कुंभ के बीच मंगल का मेड्ढ और वृश्चिक के बीच शुक्र का वृड्ढभ और तुला के बीच निर्मित हुआ। न्द्रमा का स्तंभ, कर्क राशि के समक्ष रखा गया। सूर्य के स्तंभ को नारंगी रंग से,, शुक्र के स्तंभ को सपफेद रंग से, बुध के स्तंभ को हरे रंग से, मंगल के स्तंभ को लाल रंग से, वृहस्पति के स्तंभ को चम्पई रंग से और शनि के स्तंभ को काले रंग से रंगा गया। प्रांगन के चारों और कनातें लगायी गयीं। राहू और केतू के लिए दो गड्ढे खोदे गए। एक शनि के स्तंभ के निकट और दूसरा मंगल के स्तंभ के निकट । तांबे का एक बड़ा दीप-दान बनाया गया। दीप-दान का पाया और डंडी गढ़ कर बनाए गए। दीप-दान के पहलू से सात शारवें निकाली गई। हर शारव पर एक कटोरी गढ़ कर बनाई गई। जाप के लिए आंगन के बीचों बीच सूर्य के स्तंभ के निकट एक चैकोर आसन बनाया गया जिसकी लम्बाई चार हाथ और चैड़ाई तीन हाथ थी। आसन मेें शीशम की लकड़ी के तख़्ते लगाए गए। आसन से दस हाथ हटकर बलि - स्थल बनाया गया, जिसकी लम्बाई दस हाथ और चैड़ाई आठ हाथ थी। बलि स्थल की ऊँचाई ढाई हाथ रखी गई। इसके चारों कोनों पर सिंग और त्रिशूल बनाए गए, जिसे चाँदी से मढ़ा गया। ऊपर की पंक्तियौं में कहानीकार जब कहता है कि- ‘‘अण्डाकार रूप में आँगन का घेराव किया गया’’ तो वो इस बात का इशारा करता है कि सूर्य के चारांे ओर ग्रह अण्डाकार परिध्ाि म्¨” भ्रमण करते हैं। यहां बारह राशियों का वर्णन है, जहाँ सूर्य बारी बारी हर महीना प्रवेश करता है। प्रत्येक राशि का एक स्वामी होता है। कहानीकार ने शुक्र के स्तंभ को वृष और तुला राशि के मध्य इसलिए रखा है कि वृष और तुला राशि का स्वामी शुक्र है। ग्रहों के रंग के अनुरूप ही स्तंभों को रंगा गया है। सूर्य का रंग नारंगी, चन्द्रमा का कैसरी, बुध का हरा, मंगल का लाल, वृहस्पति का चम्पई और शनि का श्याम होता है।ु कहानीकार ने राहू और केतू के लिए दो गड्ढे खुदवाकर इस कथन की पुष्टी की है कि ये दोनों गड्ढे राहु और केतु के प्रतीक हंै। साथ ही इस बात का भी संकेत है कि इनका संबंध ‘अमृत मन्थन’ की मिथ से है। हिन्दू धर्म के अनुसार जब समुद्र का मन्थन किया गया तो अमृत पीने के लिए सभी देवता आए, इनके साथ राक्षस भी पंक्ति में खड़ा हो गया तो ‘विष्णु ने’ चक्र से राक्षस के दो टुकड़े कर दिए। सर राहु है और धड़ केतू। इसलिए सर को राहू के गडढे में और धड़ को केतू को गड्ढे में ररवा गया है। इसीलिए कहानीकार ने आगे लिखा है कि ‘‘मलंग ने बताया कि प्रातः काल की पहली किरण के समक्ष अमीर स्वयं जाप करें । जाप से पूर्व ध्ूाप एवं दीप जलाएं। सूर्य, चन्द्रमा, बुध, मंगल वृहस्पति के स्तंभ पर दीप ज्वलित होगा। पहले सूर्य के स्तंभ पर और अंततः शनि के स्तंभ पर। सत्ता की देवी बलि चाहती है। बलि के शरीर का सिर राहू के गड्ढे में एवं धड़ केतू के गड्ढे में गाड़ना होगा एवं बलि का मुहूत्र्त मंगल-ग्रह के अनुसार होगा। कहानीकार ने यह कहकर कि ‘बलि का समय मंगल ग्रह के अनुरूप होगी, बताने का प्रयास किया है कि मंगल मारता है एवं अस्त्र का प्रतीक है। इसलिए मंगल के मुहूर्त में ‘अलकम्बूस’ भाग्य का मारा वहाँ आता है और बलि चढ़ जाता है। शमोएल अहमद ने अपनी दूसरी कहानी ‘छगमान्स’ में राजनेताओं के हथकण्डों को बेनकाब करते हुए ये बताने का प्रयास किया है कि किस प्रकार चुनाव जीतने के लिए अशांति फैलाई जाती है और निर्दोष लोगों के जीवन से खेला जाता है। इस कहानी का केन्द्रिय पात्रा महत्वाकांक्षी नेता कपूर चन्द मूल्तानी है, जो हर कीमत पर चुनाव जीतना ही चाहता है, परंतु इसका भाग्य इसका साथ नहीं देता है और इसका हर पासा उल्टा हो जाता है। अलपसंख्यकों के मत प्राप्त करने के लिए नगर में दंगा करवाता है जिसकी ज्वाला में सम्पूर्ण नगर जल उठता है, परन्तु इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को होता है और इसका उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है। शमोएल अहमद ने इस कहानी की शुरूआत ज्योतिष की भाषा में की है। लिरवते हैं- ‘‘कपूर चंद मुल्तानी को शनि की साढ़े साती लगी थी।’’ शनि की साढ़े साती से तात्पर्य शनि की अशुभ चाल है। शनि अपने केन्द्र पर परिक्रमा करता हुआ जब जन्म के चन्द्र-राशि के पीछे वाली राशि में आता है तो ‘‘साढे़ साती’’ आरम्भ होती है और चाल उस समय तक अशुभ समझी जाती है जब तक शनि भ्रमण करता हुआ चन्द्रमा से तीसरी राशि पर नहीं आ जाता। चूंकि शनि को एक राशि पार करने में ढाई वर्ष लगते हैं, इसलिए तीन राशियों को पार करने में इसे साढ़े सात वर्ष लग जाते हैं। इसलिए शनि की इस गति को साढ़े साती कहा जाता है। शमोएल अहमद ने ज्योतिष के प्रयोग से कहानी के आरम्भ, समाप्ति एवं परिणाम के संबंध में अनेकों भविष्यवाणियाँ कर दी हैं। उदाहरणस्वरूप कपूर चन्द मुल्तानी के भाग्य के ग्रह खराब स्थिति में है । उसकी योजना दुड्ढित एवं विचार गलत होंगे। उसके सभी प्रयास उल्टे होगंे और स्थितियाँ सामान्य होने में कम से कम साढ़े सात साल लगेंगे। शम¨एल अहमद ने फलित ज्योतिष का प्रयोग किया है। यह सभी भविष्यवाणियाँ नहीं भी की जाती तो भी कहानी के स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता परन्तु इसके प्रयोग से पाठक के मन में उत्सुकता बढ़ जाती है एवं मस्तिष्क में कई प्रश्न पैदा होते हैं जिससे लालसा बढ़ जाती है। इसके पश्चात् शमोएल अहमद कहानी को ध्ीरे-ध्ीरे आगे बढ़ाते हैं और पाठक को लगने लगता है कि कहानी वैसी ही है जैसी उसने सोचा था। कहानीकार ने ‘‘शनि की साढ़े साती’’ का उपयोग करके यह संकेत दिया है कि मुल्तानी केे ग्रह गर्दिश में है, और इसे दिखाने के लिए इन्होंने जन्म-कुण्डली बनायी जिसके विभिन्न भावों में ग्रहों को ऐसा दर्शाया है कि इनके प्रभाव उलटे हों और पाठक को लगने लगे कि मुल्तानी अपने भाग्य के आगे लाचार एवं विवश था। ग्रहों के अनुचित स्थान एवं दिशा के कारण इसका हर कार्य विपरीत होना अनिवार्य था। उदाहरणस्वरूप कहानीकार ने जन्म-कुण्डली में ग्रहों की उपस्थित एवं दिशा का वर्णन इस प्रकार किया है। ‘‘मुल्तानी का जन्म वृश्चित लग्न मे हुआ था और राशि वृष शनि कुंभ में था लेकिन मंगल कर्क में नीच का था। वृहस्पति कुण्डली के दूसरे भाव में था। इसकी दृष्टि न शनि पर थी न मंगल पर। बुध्ा, सूर्य एवं शुक्र सभी मिथ्थुन में बैठे थे। ज्योतिषी ने बताया कि शनि मेड्ढ राशि में प्रवेश कर चुका है, जिससे साढ़े साती लग गई है। दशा भी राहू की जा रही है। उसके अंधकारमय दिन होंगे और चुनाव में कामयाबी मुिश्कल से मिलेगी।’’ जन्म-कुण्डली में कहानीकार ने जानकारी दी है ं कि जन्म के समय चन्द्रमा वृड्ढ राशि में था, और गोचर में शनि मेड्ढ राशि में प्रवेश कर चुहा है। मेड्ढ राशि वृड्ढ के ठीक पीछे है जो साढ़े साती लगने का मुख्य कारण है। दूसरी मुख्य बात यह बताई गई है कि शनि, कुंभ राशि में था। ज्ञात हो कि शनि, कुंभ का स्वामी होता है, इसलिए शनि अधिक शक्तिशाली होगा एवं इसके प्रभाव अध्कि होंगे। तीसरी बात ये है कि ‘‘मंगल कर्क में नीच का था’’ फलित ज्योतिष के अनुसार मंगल उच्च जाति का ग्रह है और कर्क में नीच हो जाता है। कहानीकार ने मुल्तानी को ब्राह्ममण के रूप में प्रस्तुत किया है। जन्म-कुण्डली के अनुसार चंूंकि मंगल को कर्क में पतन है, इसीलिए मुल्तानी चुनाव जीतने के लिए हर वो कार्य करता है जिसे नहीं करना चाहिए। यहाँ तक कि संप्रदायिक दंगा भी करवाता है। जन्म-कुण्डली से ये भी ज्ञात है कि बुध्ा, सूर्य एवं शुक्र सभी मिथुन में बैठे थे। फलित ज्योतिष के अनुसार यह तीनों एक साथ हों तो मनुष्य दुःखी, अधिक बोलने वाला, इधर-उध्र ठोकर खाने वाला, बदला लेने वाला एवं घृणा करने वाला होता है। कहानीकार ने कहानी के आरंभ में ही मुल्तानी के संबंध में लिखा हैः ‘‘उसको एक पल चैन नहीं था। कभी भागकर मद्रास जाता, कभी जयपुर, इन दिनों काठमाण्डु के एक होटल में पड़ा था एवं रात-दिन कबूतर की भाँति कुढ़ता था। रह-रहकर सीने में हूक सी उठती, कभी अपना स्वप्न याद आता, कभी ज्योतिषी की बातें याद आती। कभी यह सोचकर दिल बैठने लगता कि आग उसने लगाई और फायदा बीजेपी ने उठाया।’’ जन्म-कुण्डली में ये बात भी बताई गई कि ‘‘दशा भी राहू की जा रही है।’’ राहू की दशा से तात्पर्य वह समयकाल है, जब तक राहू प्रभावग्रस्त रहेगा। राहू की दशा में कार्य अध्कितर बिगड़ता है। अगर ग्रह का योग अनुचित होगा। प्रमुख तथ्य ये भी है कि राहू की दशा 18 वर्ष तक चलती है। इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि राजनीतिक मृत्यु हो चुकी है। कहानीकार ने इसी राजनैतिक मृत्यु की बात अपनी कहानी में कही है। कहानी में ज्योतिषी विद्या का उपयोग करने के लिए एक सपने को बिन्दु बनाया है जिसे मुल्तानी देखता है। सपने में एक ऐसे पात्र को रचा है, जिसे हमारे समाज में अशुभ माना जाता है। ‘‘उसने पहली बार देखा कि छगमानस छत की मुण्डेर पर बैठा उसको पुकार रहा है। उसके नाखून गिद्ध के चुंगल की तरह बढ़ गए हैं। वह बैल की भाँति घास खा रहा है और उस पर पाँच वर्ष बीत गए.... उसने ज्योतिषी से इसकी चर्चा की । ज्योतिष ने स्वप्न को अपशगुन बताया।’’ स्वप्न को भयानक बताने के लिए कहानीकार ने इसके रूप एवं आकार का इसतरह वर्णन किया है कि पाठक को लगे कि मुल्तानी को अपने डरावने स्वप्न का अर्थ किसी ज्योतिषी से पूछना आवश्यक था और ज्योतिषी की आवश्यकता पड़ेगी तो ज्योतिष विद्या का उपयोग कहानी के अन्दर आना स्वाभाविक होगा। स्वप्न का अर्थ अगर अच्छा न हो एवं ग्रहों के प्रभाव भी खतरनाक हो तो इसका उपचार करना भी अनिवार्य है। इसलिए कहानीकार ने उपचार के द्वारा पाठक को यह जानकारी दी है कि शनि के मनहूस प्रभाव को कम करने के लिए घोड़े की नाल एवं ताँवे की अंगूठी में साढ़े सात रत्ती का नीलम धरण करना चाहिए और इन्हें शनिवार के दिन बनवाकर उसी दिन बीच वाली ऊंगली में पहन लेना चाहिए। कहानीकार ने मुल्तानी के स्वप्न, जन्मकुण्डली एवं ग्रहों के अनुचित प्रभावों की सहायता से मुल्तानी के जीवन में विडम्बना, तनाव एवं हलचल उत्पन्न किया है जिससे कहानी के कथ्य में जान पैदा हो गयी है। इसलिए कहानी में ज्योतिष का महत्व भी बढ़ जाती है। शमोएल अहमद ने अपनी एक और कहानी ‘‘मिश्री की डली’’ में भी ज्योेतिष के फलित सूत्रों का और अपने पड़ोसी अल्ताफ हुसैन तमन्ना के प्रेम-प्रसंग में फंस जाती है और पति उस्मान चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता है। कहानी का आरम्भ इन शब्दों से होता है ‘‘राशिदा पर शुक्र का प्रभाव था..... वह उसमान के बोसे लेती थी.... । राशिदा का हुस्न सिलोना था... होंठ मणिक.. दाँत जड़े जड़े हमसतह़ ़़़़़़ ़ ़ और शुक्र मीन में उच्च का था और वो कन्या में जन्मी थी। कन्या में पूर्ण का चन्द्रमा का था और राशिदा के गालों में उड्ढा की लालिमा थी। आँखों में धनक के रंग लहराते थे और होटों पर दिलफरेब मुस्कान रेंगती ़थी ़ ़और उसमान को राशिदा मिश्री की डली मालूम होती ़ ़ ़ मिश्री की डली प्राय महबूबा होती है लेकिन राशिदा उस्मान की महबूबा नहीं थी... वह उस्मान की बीवी थी और उस पर शुक्र का ...।’’ क्हानीकार ने ये कहकर कि ‘‘राशिदा पर शुक्र का प्रभाव था...।’’... और शुक्र मीन राशि में था और अंत में ‘‘वह उस्मान की बीवी थी और उस पर शुक्र का ...’’ राशिदा के जीवन में शुक्र के प्रभाव पर बल दिया है और पाठक के मन में इसकी महत्तता बढ़ा दी है और साथ ही साथ कहानी के विस्तार में प्रवेश से पहले राशिदा की इच्छा-शक्ति की एक झलक भी दिखाने का प्रयत्न किया है ताकि कहानी में पाठक की रूचि बढ़ जाए। वस्तुतः शुक्र प्रेम, प्यार, मोहब्बत, सेक्स और सुख शान्ति का ग्रह है। यहाँ तक कि शुक्र वाली नारियाँ हँसमुख एवं प्रेम स्वभाव रखने वाली और आर्कषण की धनी होती है और शारीरिक सम्बन्ध में पहल करती है। कहानीकार ने ऊपर के वाक्यों में ये कहकर कि ‘‘वह उस्मान के बोसे लेती थी’’... राशिदा की इच्छा शक्ति के संबंध में हल्का सा संकेत दिया है और ये प्रश्न उजागर कर दिया है कि ऐसी महिलाओं के लिए क्या उस्मान उचित जीवनसाथी हो सकता है? कहानीकार ने राशिदा की सुन्दरता का बखान जिन शब्दों में किया है वो शुक्र का स्वरूप है। राशिदा की जन्म-कुंडली में शुक्र मीन में था एवं कन्या में पूर्ण का चन्द्रमा था।’’ ग्रहों के इस योग से चेहरा गोल एवं सुन्दर होता है। कन्या एवं मीन राशियाँ एक दूसरे के सामने होती है इसलिए शक्र एवं चन्द्रमा एक दूसरे को देख रहे होते हैं। चन्द्रमा मन है अर्थात् मन एवं मस्तिष्क और इस पर शुक्र की दृष्टि है। इसलिए राशिदा सुन्दर एवं आकर्षक है। इसमें सुन्दरता ही सुन्दरता है। शुक्र और चन्द्रमा दोनों ही सुन्दरता के कारक है।शुक्र मीन में होने से उच्च का होता है अर्थात् शुक्र को शक्ति मिलती है। इसलिए राशिदा सुन्दर भी है और सेक्सी भी । एक जगह कहानीकार ने लिखा है ‘‘और राशिदा अपनी काफिराना अदाओं से लज्जतों की बारिश करती ... कभी आँखें चूमती... कभी होंठ... कभी मुख... कभी कान के कोने को दाँतों से दबाती और हँसती खिल...खिल...खिल.... और उसकी चूड़ियाँ खनकतीं... पायल बजते... और पायल की छन-छन चूड़ियों की खन-खन हंसी की खिल-खिल में घुल जाती और उस्मान बेसुध ह¨ जाता... एक दम सर मस्ती की लहरों में डूबता...उभरता.... उसकी आँखें बंद रहतीं और उसको महसूस होता राशिदा मानो लज्जतों से भरा जाम है जो कुदरत ने उसे परोसा है। कहानीकार ने राशिदा की जन्मकुण्डली के विपरीत उसके पति की जन्मकुण्डली तैयार की है एवं इनमें ग्रहों की जो उपस्थिति दिखाई है तो ऐसे मनुष्य सीध्ेा-साध्ेा होते हैं और शुक्र राशि वाली नारियों को संतुष्ट करने में असफल रहते हैं। राशिदा के पति उस्मान के संबंध में लिखा है ‘‘उस्मान उन मर्दों में था जो पराई औरतां की तरफ देखना भी महापाप समझता था ा ऐसा नहीं हुआ कि घर आते ही उसने राशिदा को बाहों में भर लिया हो और होठों पर होंठ अंकित कर दिए हों...या कभी गालों में चुटकी ली कि मेरी जान गजब ढा रही हो.... जो मर्द कभी पराई स्त्रिायों को नहीं देखते वो अपनी अधर््ांागनी से इस तरह पेश भी नहीं आते । लेकिन आदमी के नाखून भी होते हैं। उसमें जानवर के भी लक्षण होते हंै। उस्मान के अन्दर भी कोई जानवर होगा जो सिंह तो कदापि नहीं था... भेड़िया भी नहीं... बन्दर भी नहीं... ख़रगोश हो सकता है... भेड़ या मेमना .. जिसका संबंध मेष राशि से है। उस्मान के हाथ खुरदुरे होंगे लेकिन उसकी गिरफ्त बहुत नर्म थी... वो भंभोड़ता नहीं था... वो राशिदा को इस तरह छूता जैसे कोई अंध्ेारे में बिस्तर टटोलता है !... ऊपर दिए गए कथन में उस्मान को ख़रगोश से संज्ञा दी गई है । कहानीकार ने स्पष्ट किया है कि वह राशिदा को शारीरिक रूप से संतुष्ट नहीं कर सकता । उसका संबंध मेष राशि से है । ऐसे लोग वास्तव में सीध्ेा होते हैं। शारीरिक सम्बन्ध बनाने में कमजोर होते हैं या अधिक से अधिक बिस्तरा टटोलने वाले होते हैं। कहानीकार ने इस बात की और संकेत दिया है कि सेक्सी नारियों के लिए शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति अर्थहीन होते हैं बल्कि ऐसी नारियों को ऐसे पुरुष की आवश्यकता होती है जो ंिसह की तरह उग्र या कम से कम भेड़िये जैसा आचरण वाला हो। कहानीकार लिखता हैः उस्मान उन मर्दों में था जो पराई औरतां की तरफ देखना भी महापाप समझते हैं...... जो मर्द कभी पराई स्त्रिायों को नहीं देखते वो अपनी अधर््ाांगनी से इस तरह पेश भी नहीं आते । क्हानीकार कहना चाहता है कि उस्मान एवं राशिदा के शारीरिक सम्बन्ध सामान्य नहीं थे। इसकी पुष्टी इन शब्दों में की है ‘‘रति-क्रिया के बीच कोई शीशा देखे तो क्या देखेगा... सेक्स अपनी उदंडता के साथ मौजूद होगा....लेकिन उस्मान के साथ ऐसा नहीं था कि आँखे चढ़ गई है... सांसे तेज़ चल रही हैं, या बाजूआंे के सिकंजे को सख्त किया .... या दाँत भंींचे.... और वो जो होता है कि ऊंगलियाँ नटखट हो जाती है और धीरे धीरे पुश्त पर नीचे उतरने लगती हैं तो ऐसा नहीं होता था... वह राशिदा के गाल इस तरह सहलाता जैसे औरतें रूमाल से चेहरे का पाऊडर पोंछती हैं’’। राशिदा अपनी इच्छा को इशारों में व्यक्त करती है, फिर भी उस्मान कुछ नहीं कर पाता है। कहानीकार ने राशिदा की विलासिता का वर्णन मज़े ले लेकर इस प्रकार किया है ‘‘एक दिन राशिदा ने पाँव में भी मेहन्दी रचाई। उस्मान घर आया तो राशिदा चारों ख़ानों चित पड़ी थी। उसके बाल खुले थे। उस्मान पास ही बिस्तर पर बैठ गया एवं जूते की फीते खोलने लगा। राशिदा इतरा कर बोली अल्ला कसम देखिए... कोई शरारत न कीजिएगा... । क्यों...? मेरे हाथ पाँव बंध्ेा हैं। मैं कुछ नहीं कर पाऊँगी। उस्मान मुस्कुराया राशिदा थोड़ा करीब खिसक आई । उसका पेट उस्मान की कमर को छूने लगा। उस्मान उसको प्यार भरी नजरों से देखने लगा। प्लीज... शरारत नहीं...। राशिदा फिर इतराई..... भला उस्मान क्या करता... ? अगर कुछ करत तो राशिदा खुश होती। औरतें इसी तरह इशारे करती हैं। लेकिन जो मर्द पराई औरतों को नहीं देखते वो ऐसे संकेत भी नहीं समझते। उनके लिए पत्नी औरत नहीं होती, पाक साफ बीबी होती है””। ऐसी स्थिति में यदि राशिदा किसी पराए पुरुष की ओर आकर्षित होती है तो स्वाभाविक है। परन्तु दूसरा पुरुष कैसा होगा ? इस पर किन ग्रहों के प्रभाव होंगे..... इत्यादि-इत्यादि प्रश्न पाठक के मस्तिष्क में जन्म लेते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर के लिए कहानीकार ने जिस पुरुष को पात्र बनाया है उसकी कुण्डली में ऐसे ग्रहों को स्थान दिया है जो राशिदा के ग्रहों से तालमेल रखते हौ कहानीकार ने लिखा है ‘‘और कुदरत के जाम को शनि अपनी वक्र दृष्टि से देखता था... शुक्र पर शनि की नजर थी...। शनि काईयाँ होता है... श्याम रंग ... हाथ खुरदुरे... दाँत बेहंगम... नजर तिरछी...मकर राशिा का स्वामी... कुंभ का स्वामी...! कहानीकार ने राशिदा को कुदरत के जाम से संज्ञा देते हुए शुक्र के समक्ष शनि को रखा है जो सामने के झरोखे से शुक्र अर्थात् राशिदा को देखता रहता है। इसके पश्चात् शनि की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए इसे चतुर, श्याम रंग, पथरीले हाथ एवं टेढ़ी दृष्टि वाला बताया गया है। कहानीकार ने शनि को अल्ताफ हुसैन तमन्ना का नाम दिया है एवं शुक्र से राशिदा को जोड़ा है । शुक्र की शनि से मित्राता है। शनि एवं शुक्र जब मिलते हैं या एक-दूसरे के सामने बैठते हैं तो शुक्र में शनि का रंग आ जाता है और कामुकता जन्म लेती है। अल्ताफ हुसैन तमन्ना की ओर राशिदा को आकर्षित करते हुए कहानीकार ने इस प्रकार चित्राण किया है ‘‘ शुक्र में शनि का रंग घुलने लगता है और पता नहीं चलता..., शनि... शनि जो ;धीरे-धीरे चलता है।’’.. दरअसल राशिदा एवं अल्ताफ हुसैन की खिड़की आमने-सामने होती है । दोनों एक-दूसरे को देख रहे होते हैं। धाीरे-धीरे शुक्र में शनि का रूप मिश्रित होता है अर्थात् राशिदा उसकी नजरों से प्रभावित हो कर उसकी ओर आकर्षित हो रही है। इसीलिए अल्ताफ हुसैन का किसी न किसी बहाने से उस्मान के घर जाना आरम्भ हो जाता है एवं उस्मान चाहकर भी उसे नहीं रोक पाता क्योंकि उसका मंगल दुर्बल है और शनि पीछा नहीं छोड़ने वाला चमरचिट ग्रह है। कहानीकार ने मंगल एवं शनि के स्वरूप में जो विभिन्नता है उसे इन शब्दों में व्यक्त किया है। ‘‘ऐसा ही होता है शनि... चमरचट... पीछा नहीं छोड़ता! और शनि दोष को काटता है मंगल... शनि का रंग काला है, मंगल का लाल है... शनि वर्फ है... मंगल आग है। शनि दुख का कारक है। मंगल खतरे का सूचक है। कहते हैं शनि एवं मंगल का योग अच्छा नहीं होता। चैथे घर में हो तो गृहस्थी बरबाद करेगा और दसवें घर में हो तो धंधा बंद करेगा। शनि छुप-छुप कर कार्य करता है एवं मंगल दो-टूक बात करता है। उस्मान की जन्मकुण्डली में मंगल दुर्बल रहा होगा... अर्थात् जन्म के समय उसके हृदय में मंगल की किरणों का प्रवेश नहीं हुआ था। अन्यथा अल्ताफ हुसैन को एक बार घूर कर देखता।’’ कहानीकार ने शनि के बारे में एक मिथिक कथा बयान की है ‘‘जब मेघनाथ का जन्म हो रहा था तो रावण ने चाहा कि लग्न से ग्यारहवें नवग्रहों का संयोग हो, परन्तु नाफरमानी शनि की घुटटी में है। सब ग्रह इकट्ठे हो गए, लेकिन जब बच्चे का सिर बाहर आने लगा तो शनि ने एक पाँव बारहवीं राशि की ओर बढ़ा दिया, रावण की दृष्टि उस पर पड़ गई और उसने पांव पर प्रहार किया तबसे शनि लंग मारकर चलता है और ढाई वर्ष में एक राशि पार करता है।’’ इस मिथिक कथा से शनि में पाठक की दिलचस्पी बढ़ जाती है । कहानीकार ने उस्मान, राशिदा एवं अल्ताफ हुसैन तमन्ना को कहानी के विभिन्न पड़ाव से गुजारते हुए उस स्थान पर पहुँचा दिया है जब अल्ताफ हुसैन तमन्ना धोबी एवं दूध वाले की खोज में उस्मान के दरवाजे पर पहुँचता है। कहानीकार ने बताया है कि शनि ने एक कदम वृष की ओर बढ़ाया और दरवाजे के निकट पहुँच गया। अल्ताफ धीरे-धीरे घर के भीतर प्रवेश करने में भी सफल होता है, यहाँ तक कि वह अपने गंतव्य स्थान को प्राप्त कर लेता है। कहानीकार ने अल्ताफ हुसैन को उस्मान के घर पहुँचाने के लिए रोहिणी नक्षत्र में शनि को प्रवेश कराया है। वह लिखते हैं ‘‘रोहिणी नक्षत्रा के चारों चरण वृष राशि में पड़ते हैं जो शुक्र का घर है। रोहिणी शनि की महबुबा है। इसकी शक्ल पहिए सी है। इसमें तीन सितारे होते हैं। पहले दिन अल्ताफ हुसैन ने उस्मान के द्वार पर कदम रखा तो शनि वृष में प्रवेश कर रहा था अब शनि रोहिणी नक्षत्र के पहले चरण में था।’’ हर राशि में नक्षत्र होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। रोहिणी नक्षत्र वृष राशि में पड़ता है। शनि इस नक्षत्र में खुश रहता है। ऊपर दिए गए कथन में कहानीकार ने बताया है कि शनि नक्षत्र रोहिणी के पहले चरण में है अर्थात् प्रेम प्रसंग का आरम्भ हो चुका है। रोहिणी का रूप पहिये जैसा है। इसलिए अब पहिया घूमेगा एवं प्रेम प्रसंग इसी प्रकार आगे बढ़ता रहेगा। मंगल शक्ति का प्रतीक है। उस्मान का मंगल चूँकि दुर्बल है, इसलिए वह विरोध नहीं कर पाता। कहा जा सकता है कि कहानीकार ने अपनी कहानियों में ज्योतिष सूत्रों के प्रयोग से इस विद्या को बल प्रदान किया है और अलग प्रकार की स्थितियाँ उत्पन्न की है। कहानी । अलनम्बूस के बाप के मन में बेटे को खोने की चिन्ता एक मौन हलचल पैदा करती है। अमीर उस्तिया के मन में ग्रहों के अशुभ चाल से सत्ता के हाथ से निकल जाने का जो भय है, उसका बहुत अच्छा वर्णन कहानी में हुआ है । और इसके निराकरन में बेकसूर अलकम्बूस की बलि चढ़ा दी जाती है । गौर करने की बात ये है कि अलकम्बूस अल्पसंख्यक समुदाय से आता है और शासन लोकतांत्रिक है। इसी तरह साढ़े साती लगने से कहानी झगमान्स के केन्द्रीय पात्र मुल्तानी के अन्दर राजनीतिक मृत्यु का जो भय उत्पन्न हुआ है, उसकी व्याख्या ज्योतिष सूत्रों के बिना संभव नहीं था। और राशिदा के जीवन में होने वाले बदलाव एवं अल्ताफ हुसैन के प्रति आकर्षण से पति उस्मान के मन की जो स्थिति होती है, उसका भी बयान अद्वितीय है । यहां कहानी कहने की कला अपने शिखर पर नजर आती है। अंततः ये कहना व्यर्थ न होगा कि शमोएल अहमद ने ज्योतिष के रंग में कहानियों का अनूठा शिल्प रचा है और कहानी की विधा को नयी दिशा प्रदान किया है।

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